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दु:ख

 आज हम बात करने वाले हैं दु:ख के बारे में ।तुम कब कहते हो कि तुम दु:खी हो, जरा पूछो खुद को कि , मेरे दु:खी होने की डेफिनेशन क्या है ?


तुम्हारे पास पैसे नहीं है, तुम्हारे पास घुमाने के लिए लड़की नहीं है, तुम्हारे पास घूमने के लिए बाइक नहीं है , तो दु:खी हो तुम वैसे तो हिंदुस्तान का हर तीसरा लड़का या लड़की दुखी मिलेंगे तुमको। 


क्या अच्छा जीवनसाथी और अच्छा परिवार न होना दु:ख है तो फिर कई ऐसे कलाकार तुमको इसी वजह से खुश मिलेंगे कि उनके पास एक खराब जीवनसाथी या खराब फैमिली थी ।


अच्छी कॉलेज या नौकरी न मिलना दु:ख है तो फिर उनका क्या जो खराब कॉलेज से निकल कर भी अच्छी नौकरी पाते हैं और खराब जगह पर नौकरी करके भी खुश रहते हैं।


अगर फिजिकल पैन दुख है तो कई ऐसे लोग मिलेगी तुम्हें जो कहेंगे कि कभी-कभी यह फिजिकल पैन ही जिंदगी आसान और आरामदायक बनाता है।


तुम दु:खी इसलिए नहीं कि तुम्हारे आसपास कुछ हो रहा है तुम दु:खी इसलिए हो क्योंकि तुम्हारे अंदर कुछ हो रहा है।


भगवान ने मनुष्य जीवन में सिर्फ सुख नाम की घटना लिखी है मगर दु:ख तो हमने खुद निर्माण किया है।


जब तुम वह नहीं पाते जो तुम्हें मिलना चाहिए, जब तुम वह नहीं बनते जो तुम्हें बनना चाहिए, जब तुम वह नहीं करते जो तुम्हें करना चाहिए, तो तुम दुख के दरवाजे पर दस्तक दे रहे हो ।


अगर तुम्हें दुख के साथ जीना आ गया तो तुम्हें सच में जीवन जीना आ गया ।

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