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Zer to pidha chhe jani jani : review

Zer to pidha chhe jaani jaani  ये एक गुजराती उपन्यास है। जिसके लेखक मनुभाई पंचोली उर्फ़ दर्शक हैं।  वैसे तो इसे एक लव स्टोरी कहा जा सकता हैं। मगर ये सिर्फ एक लव स्टोरी न होकर और भी बहोत कुछ हैं। 

          इसमे रोहिणी और सत्यकाम की कहानी है। जो एकदूसरे को प्यार करते हैं मगर भाग्य के कारण उनको बिछड़ना पड़ता है। रोहिणी के पिताजी गोपालबापा , इन दोनों की शादी तय करते है , मगर भाग्य को यह मंजूर नहीं था। 

         सत्यकाम मुम्बई जाता है और वहीं फस जाता है। इस ओर गोपालबापा की मौत होती है। रोहिणी अब अकेली पड़ गई थीं। छोटी बहन रेखा के साथ वो सब कामकाज सम्भालती थी। तभी सत्यकाम की मौत की खबर आती हैं। 

         सत्यकाम की मौत के बाद रोहिणी हेमंत नाम के लड़के के साथ शादी करती हैं। और फिर एक दिन सत्यकाम की खबर होती है कि वो जिंदा हैं। फिर जो घटनाएं घटती है वो हमें एक फ़िल्म जैसी हैं। 

           इस कहानी में दूसरे विश्वयुद्ध को आबाद रूप से उतारा गया है। उस समय का रक्तपात और हिट्लर का उदय ये सब इस नवल में बेहतरीन तरीके से लिखें गये है। इसे पढ़ते वक्त हमें ये घटनाएं हमारे सामने घट रही हो ऐसा लगता हैं। 

            मगर इनके साथ साथ बुद्ध  के मध्यम मार्ग और गुजराती संतवाणी के बीच जो समन्वय लाकर इस कहानी को लिखा गया है , वो हमें इसे लाजवाब कहने पर मजबूर करती है। गुजरात के एक गांव से शुरू हो रहीं कहानी को विश्व के फलक के साथ जिस तरह दर्शक ने जोड़ा है वो बहोत अचंभित करने वाला है। 
फिर भी कैसे सत्यकाम और रोहिणी फिरसे मिले और हमेशा के लिए जुड़े की नहीं ये जानने के लिए आपको एकबार ये नवलकथा read करनी चाहिए। 

    कमेंट कर बताये ये  पोस्ट आपको कैसी लगी ।

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